ज़मीन सौदे से उपजा विवाद
नवलगढ़ के गोठड़ा गांव में स्थित इस विवाद की शुरुआत तब हुई जब गांव के किसान सांवरमल जी की 36 बीघा ज़मीन एक सीमेंट फैक्ट्री के लिए अधिग्रहित की गई। फैक्ट्री उनके घर से कुछ ही दूरी पर है, और 2019 से यह ज़मीन फैक्ट्री के काम में आ रही है।
सांवरमल जी ने बताया कि 2020 तक उन्होंने अपनी ज़मीन पर फसलें उगाईं, लेकिन उसके बाद से कानूनी उलझनें शुरू हो गईं। उनकी 12 बीघा ज़मीन रिको (RIICO) और 24 बीघा खनन ज़ोन में चली गई।
मुआवज़े की रकम पर नाराज़गी
सांवरमल जी के अनुसार, जब उन्होंने ज़मीन दी थी, तब कंपनी प्रबंधक ने उन्हें विकास के नाम पर आश्वस्त किया था, लेकिन मुआवज़े की राशि को लेकर कोई स्पष्टता नहीं दी गई। उस समय ₹8.35 लाख प्रति बीघा की दर बताई गई, लेकिन उन्हें आज तक एक भी पैसा नहीं मिला।
उनकी चचेरी बहन ने 2016 में ₹18 लाख प्रति बीघा की दर से ज़मीन बेची थी, लेकिन बदले में उसे केवल ₹11.75 लाख ही मिले। सांवरमल जी का दावा है कि न तो तय दर से पैसे मिले और न ही किसी अधिकारी ने उनकी शिकायत पर ध्यान दिया।
समझौते की कोशिशें और टूटता भरोसा
साल 2023 में जब कंपनी के खिलाफ धरना हुआ, तब कंपनी के गुप्ता जी ने सांवरमल जी से समझौता करने की बात की। इस समझौते में ₹20 लाख प्रति बीघा नकद और ₹6 लाख चार महीने बाद देने की बात थी। साथ ही, 8.5 बीघा ज़मीन ₹5 लाख प्रति बीघा की दर से देनी थी।
समझौता ₹500 के स्टांप पेपर पर हुआ, लेकिन गुप्ता जी के हटने के बाद नया प्रतिनिधि आया जिसने ब्याज देने से इंकार कर दिया। इस वजह से समझौता टूट गया और सौदा रद्द कर दिया गया।
काग़ज़ी सबूतों के बावजूद अनदेखी
सांवरमल जी के पास ज़मीन के सभी दस्तावेज़ मौजूद हैं। उनके नाम से जमाबंदी दर्ज है, बावजूद इसके कंपनी का रवैया टालमटोल भरा रहा। अब तक उन्हें सिर्फ ₹1 लाख की रकम चेक द्वारा मिली है, जबकि उनकी 36 बीघा ज़मीन की अनुमानित कीमत ₹9.36 करोड़ बनती है।
उनका कहना है कि यदि यह राशि दो साल पहले मिलती, तो ब्याज सहित वे इसकी क़ीमत और ज़्यादा वसूल सकते थे।
और भी किसान हैं इस लड़ाई में
सांवरमल जी अकेले नहीं हैं। गांव के अन्य किसान भी इसी तरह की परेशानियों का सामना कर रहे हैं। एक किसान ने बताया कि उसकी 9 बीघा ज़मीन और 13 कमरों वाला मकान फैक्ट्री के लिए उपयोग में लाया गया है। कंपनी ने पहले ₹3.80 करोड़ देने की बात कही थी, लेकिन अब ₹3.42 करोड़ देने पर अड़ी हुई है।
इन किसानों की ज़मीन की बाज़ार दर ₹38 लाख प्रति बीघा है, लेकिन कंपनी ₹26 लाख से ज़्यादा देने को तैयार नहीं है।
प्रमुख बिंदु (Highlights)
- गोठड़ा गांव के किसान सांवरमल जी की 36 बीघा ज़मीन पर विवाद, अब तक नहीं मिला मुआवज़ा
- कंपनी से समझौता ₹20 लाख प्रति बीघा पर हुआ था, लेकिन बाद में सौदा रद्द
- केवल ₹1 लाख की राशि मिली जबकि पूरी ज़मीन की क़ीमत ₹9.36 करोड़ आंकी गई
- कई अन्य किसान भी उचित मुआवज़ा न मिलने की समस्या से जूझ रहे हैं
- किसानों ने अब कोर्ट में जाने की ठानी, प्रशासन से भी न्याय की उम्मीद
किसानों की मांग और प्रशासन से उम्मीदें
किसानों की मांग है कि उन्हें उनकी ज़मीन का उचित मुआवज़ा मिले और कंपनी उनके साथ न्याय करे। साथ ही, प्रशासन को भी इसमें हस्तक्षेप कर इस विवाद का हल निकालना चाहिए।
सांवरमल जी कहते हैं, “अगर हमारी नहीं सुनी गई तो हम कोर्ट ज़रूर जाएंगे।” उन्हें भरोसा है कि अदालत से उन्हें इंसाफ़ मिलेगा।
परिणाम
झुंझुनू जिले में सीमेंट फैक्ट्री से जुड़ा यह ज़मीन विवाद कई किसानों के भविष्य से जुड़ा गंभीर मामला बन चुका है। जहां एक तरफ़ किसान अपनी मेहनत की पूंजी गंवाने की कगार पर हैं, वहीं दूसरी ओर कंपनी और प्रशासन की उदासीनता चिंता का विषय है। ज़रूरत है कि सभी पक्ष मिलकर इस समस्या का समाधान निकालें ताकि किसानों को उनका वाजिब हक़ मिल सके।