स्मार्ट मीटर ने 10 दिन में दिखाए 150 यूनिट ज्यादा, उपभोक्ता ने खुद पकड़ी गड़बड़ी
कोटा, राजस्थान: बिजली के बिलों में हो रही बढ़ोतरी को लेकर अक्सर उपभोक्ता परेशान रहते हैं, लेकिन कोटा के एक उपभोक्ता ने खुद ही एक चौंकाने वाली गड़बड़ी का खुलासा किया है। दरअसल, यह मामला तब सामने आया जब उपभोक्ता ने अपने घर में लगे सामान्य बिजली मीटर और हाल ही में लगाए गए स्मार्ट मीटर दोनों को एक ही बिजली लाइन पर 10 दिनों तक चलाकर देखा।
परिणामस्वरूप, सामान्य मीटर ने जहां 279 यूनिट की खपत दर्ज की, वहीं स्मार्ट मीटर ने 429 यूनिट दिखाई। यानी, मात्र 10 दिनों में स्मार्ट मीटर ने सामान्य मीटर से पूरे 150 यूनिट ज्यादा की रीडिंग दर्ज कर ली। यह खबर अब सोशल मीडिया पर एक समाचार कतरन के रूप में तेजी से वायरल हो रही है, जिसमें उपभोक्ता इस विसंगति को ‘लूट’ करार दे रहे हैं।
कंपनी का शुरुआती रवैया और फिर मीटर बदला
खबर के अनुसार, उपभोक्ता ने पहले बिजली वितरण कंपनी (समाचार में महावितरण का उल्लेख है) को अपनी शिकायत दर्ज कराई। शुरुआती तौर पर, कंपनी के कर्मचारियों ने उनकी बात को अनसुना कर दिया और कहा कि मीटर सही रीडिंग दे रहा है। हालांकि, उपभोक्ता अरुण कुमार ने हार नहीं मानी और जोर दिया कि कंपनी के अधिकारी खुद दोनों मीटरों को एक साथ चलाकर जांच करें।

उनके दबाव के बाद, महावितरण की एक तकनीकी टीम ने दोनों मीटरों की जांच की। जांच के बाद, टीम ने स्वयं स्वीकार किया कि स्मार्ट मीटर वास्तव में अधिक रीडिंग दिखा रहा था। इसके बाद, कंपनी ने उस स्मार्ट मीटर को बदल दिया। उपभोक्ता अरुण कुमार का कहना है कि जब तक उपभोक्ताओं को मीटर की जांच की सुविधा नहीं मिलेगी, तब तक इस तरह की ‘लूट’ जारी रहेगी। उन्होंने उपभोक्ताओं को जागरूक रहने और ऐसी अनियमितताओं का पुरजोर विरोध करने का आह्वान किया है।
सामान्य मीटर और स्मार्ट मीटर: फायदे और नुकसान
यह घटना भारत में बड़े पैमाने पर चल रहे स्मार्ट मीटर इंस्टॉलेशन अभियान के बीच उपभोक्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय बन गई है। बिजली मीटर मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं, जिनके अपने फायदे और नुकसान हैं:
1. सामान्य मीटर (Conventional Meter – Analog/Digital) ये पुराने या पारंपरिक मीटर होते हैं जो बिजली की खपत को रिकॉर्ड करते हैं।
- फायदे:
- कम लागत: इनकी शुरुआती लागत आमतौर पर स्मार्ट मीटरों की तुलना में कम होती है।
- सरल तकनीक: इनकी कार्यप्रणाली सरल होती है, जिससे इन्हें समझना और इनमें खराबी का पता लगाना आसान होता है।
- प्रत्यक्ष निगरानी: उपभोक्ता मीटर पर सीधे रीडिंग देख सकते हैं।
- नुकसान:
- मैनुअल रीडिंग: रीडिंग लेने के लिए कर्मचारियों को घर-घर जाना पड़ता है, जिसमें मानवीय त्रुटि और देरी की संभावना होती है।
- रीयल-टाइम डेटा का अभाव: उपभोक्ता को अपनी वास्तविक समय की खपत का तुरंत पता नहीं चलता।
- ग्रिड प्रबंधन में सीमाएं: बिजली कंपनियों के लिए बिजली ग्रिड का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करना मुश्किल होता है।
2. स्मार्ट मीटर (Smart Meter) ये उन्नत डिजिटल मीटर होते हैं जो बिजली की खपत का डेटा स्वचालित रूप से बिजली कंपनी को भेजते हैं।
- फायदे:
- रीयल-टाइम डेटा: उपभोक्ता अपनी बिजली खपत को वास्तविक समय में ट्रैक कर सकते हैं, जिससे वे ऊर्जा बचाने के लिए अपनी आदतों को बदल सकते हैं।
- रिमोट रीडिंग और नियंत्रण: मीटर रीडिंग दूर से की जा सकती है, जिससे मानवीय हस्तक्षेप कम होता है और बिलिंग में तेजी आती है। बिजली कंपनी दूर से ही कनेक्शन काट या जोड़ सकती है।
- बेहतर ग्रिड प्रबंधन: बिजली कंपनियों को ग्रिड की स्थिति का बेहतर पता चलता है, जिससे बिजली कटौती का तेजी से पता लगाने और वितरण को अनुकूलित करने में मदद मिलती है।
- डायनामिक टैरिफ की संभावना: भविष्य में अलग-अलग समय पर बिजली की दरें तय करने में मदद मिल सकती है, जिससे उपभोक्ता ऑफ-पीक आवर्स में सस्ती बिजली का उपयोग कर सकें।
- नुकसान:
- उच्च लागत: इनकी शुरुआती लागत सामान्य मीटरों से काफी अधिक होती है, जिसका बोझ अंततः उपभोक्ताओं पर पड़ सकता है।
- सटीकता के मुद्दे: कुछ मामलों में, इन मीटरों की रीडिंग में विसंगतियां पाई गई हैं, जैसा कि कोटा की घटना में देखा गया है, जिससे उपभोक्ताओं के बिल बढ़ सकते हैं।
- डेटा सुरक्षा और गोपनीयता: उपभोक्ता की खपत के पैटर्न का विस्तृत डेटा एकत्र होता है, जिससे डेटा सुरक्षा और गोपनीयता को लेकर चिंताएं उठ सकती हैं।
- तकनीकी खराबी: सॉफ्टवेयर या संचार संबंधी समस्याएं मीटर के ठीक से काम न करने का कारण बन सकती हैं।
आगे की राह: पारदर्शिता और उपभोक्ता अधिकार
कोटा की यह घटना स्मार्ट मीटरों की विश्वसनीयता और उपभोक्ताओं के अधिकारों पर गंभीर सवाल उठाती है। यह आवश्यक है कि बिजली वितरण कंपनियां मीटरों की सटीकता सुनिश्चित करें, पारदर्शिता बढ़ाएं और उपभोक्ताओं की शिकायतों का त्वरित और प्रभावी ढंग से निवारण करें। नियामकों को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मीटरों की जांच के लिए स्पष्ट प्रोटोकॉल हों और उपभोक्ता आसानी से अपनी शिकायतों का समाधान करा सकें। सोशल मीडिया पर वायरल हो रही यह खबर निश्चित रूप से बिजली कंपनियों पर उपभोक्ताओं के विश्वास को बनाए रखने के लिए अधिक जवाबदेही सुनिश्चित करने का दबाव डालेगी।